राजस्थान में खरीफ फसलों की बुवाई का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे किसानों की तैयारियाँ भी तेज हो गई हैं। खरीफ फसलें आमतौर पर जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई तक बोई जाती हैं, और इनका सीधा संबंध मॉनसून वर्षा से होता है। मौसम विभाग द्वारा 25 जून 2025 के आसपास मॉनसून के आगमन की भविष्यवाणी के बाद किसानों में उत्साह देखने को मिल रहा है।
राजस्थान में प्रमुख खरीफ फसलों में बाजरा, मक्का, ज्वार, उड़द, मूंग, ग्वार, तिल, सोयाबीन और कपास शामिल हैं। ये फसलें मुख्य रूप से वर्षा पर आधारित होती हैं क्योंकि राज्य के अधिकांश हिस्सों में सिंचाई की सुविधा सीमित है। खरीफ फसलें न केवल किसानों की आय का मुख्य स्रोत हैं, बल्कि प्रदेश की खाद्यान्न आपूर्ति और पशुधन के चारे की भी पूर्ति करती हैं।
पूर्वी राजस्थान के जिलों जैसे कोटा, बारां, भरतपुर, दौसा और जयपुर में मक्का, सोयाबीन और धान जैसी फसलें ज्यादा बोई जाती हैं। जबकि पश्चिमी राजस्थान में ग्वार, बाजरा और मूंग अधिक प्रचलित हैं। बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर, चुरू और बीकानेर जैसे जिलों में कम पानी वाली फसलें जैसे ग्वार और बाजरा ज्यादा सफल होती हैं।
राज्य सरकार और कृषि विभाग द्वारा किसानों को समय पर बीज, खाद, कीटनाशक और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने की योजना बनाई जा रही है। इसके अलावा किसानों को उन्नत बीजों के चयन, जल प्रबंधन, जैविक खेती और कीट नियंत्रण के उपायों की जानकारी दी जा रही है।
इस वर्ष अच्छी बारिश की संभावना को देखते हुए कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को सलाह दी है कि वे भूमि की जुताई, खेत की सफाई, नमी संरक्षण और बीज उपचार जैसे काम समय से पूरा करें। साथ ही, उन्होंने चेतावनी दी है कि अत्यधिक वर्षा से जल भराव की समस्या से बचने के लिए खेतों में जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें।
खरीफ फसलें प्रदेश के ग्रामीण जीवन की रीढ़ होती हैं। एक सफल खरीफ सत्र न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारता है, बल्कि पूरे राज्य की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास को भी गति देता है। यदि इस बार मॉनसून समय पर आता है और अच्छी बारिश होती है, तो यह खरीफ सत्र राजस्थान के लिए उन्नति और समृद्धि का प्रतीक बन सकता है।
इसलिए राज्य भर में किसान आशा और तैयारियों के साथ आगामी मॉनसून और खरीफ सीजन का इंतजार कर रहे हैं।
