धान, जिसे हम आम बोलचाल में चावल की फसल के रूप में जानते हैं, भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसलों में से एक है। हालांकि राजस्थान को शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्र माना जाता है, फिर भी राज्य के पूर्वी हिस्सों में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। विशेष रूप से कोटा, बारां, झालावाड़, बूंदी, उदयपुर और अलवर जिलों में धान एक प्रमुख खरीफ फसल के रूप में उगाई जाती है।
धान की खेती मुख्यतः वर्षा पर आधारित होती है, इसलिए इसका सीधा संबंध मॉनसून की समय पर और पर्याप्त वर्षा से होता है। जैसे ही जून के अंत या जुलाई की शुरुआत में मॉनसून राजस्थान में प्रवेश करता है, किसान धान की नर्सरी तैयार करने और रोपाई की प्रक्रिया में जुट जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में सीधी बुवाई भी की जाती है।
धान की किस्मों में ‘भास्कर’, ‘कृष्णा हंस’, ‘IR-64’, ‘मुक्ता’, ‘स्वर्णा’ और ‘MTU-1010’ जैसी उन्नत किस्में काफी लोकप्रिय हैं, जो कम पानी में अधिक उत्पादन देती हैं। राज्य सरकार और कृषि विश्वविद्यालय किसानों को हाईब्रिड बीज, जैविक खाद, और जल प्रबंधन तकनीकों की जानकारी देने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चला रहे हैं।
धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण होता है जल प्रबंधन और कीट नियंत्रण। अत्यधिक जलभराव या लंबे समय तक सूखा—दोनों ही इसकी फसल को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए किसानों को खेतों में जल निकासी और नमी बनाए रखने के उपाय अपनाने की सलाह दी जाती है।
धान की कटाई अक्टूबर के अंत या नवंबर की शुरुआत में की जाती है। कटाई के बाद किसान इसे धूप में सुखाते हैं और फिर मंडियों में बेचते हैं या घरेलू उपयोग के लिए भंडारण करते हैं। राज्य सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर धान की खरीद करती है, जिससे किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिल सके।
धान न केवल पेट भरता है बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था, रोजगार और किसानों के आत्मनिर्भर जीवन का आधार भी बनता है। अगर मौसम सहयोग करे और तकनीकी सहायता समय पर मिले, तो धान की फसल राजस्थान के किसानों के लिए समृद्धि का द्वार खोल सकती है।
आज जब राजस्थान का किसान आसमान की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखता है, तो उसके मन में बस एक ही सपना होता है—भरपूर बारिश हो और उसके खेतों में लहराता हुआ सोने जैसा धान उगे। यही सपना उसे जीने और मेहनत करने की प्रेरणा देता है।
