जैविक खेती

राजस्थान में जैविक खेती – वर्तमान स्थिति, संभावनाएं और सरकारी कोशिशें

राजस्थान एक ऐसा राज्य है जिसकी कृषि पर प्राकृतिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ता है। यहां का अधिकांश भू-भाग शुष्क और अर्ध-शुष्क है, जहां पानी की कमी और मिट्टी की सीमित उर्वरता कृषि उत्पादन के लिए चुनौती बनी रहती है। इन परिस्थितियों में जैविक खेती एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर रही है, क्योंकि यह न केवल मिट्टी की उर्वरता को लंबे समय तक बनाए रखती है, बल्कि किसानों को रासायनिक खाद और कीटनाशकों के खर्च से भी बचाती है।

वर्तमान स्थिति

राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों से जैविक खेती को अपनाने वाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कोटा, बारां, भीलवाड़ा, उदयपुर, सिरोही और अलवर जैसे जिलों में कुछ क्षेत्रों ने पूरी तरह से जैविक पद्धति अपना ली है। यहां के किसान गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद, जैविक कीटनाशी जैसे नीम तेल, जीवामृत और दशपर्णी का प्रयोग कर रहे हैं। राजस्थान राज्य जैविक प्रमाणन एजेंसी के आंकड़ों के अनुसार, हजारों हेक्टेयर भूमि पर विभिन्न फसलें जैविक तरीके से उगाई जा रही हैं, जिनमें गेहूं, चना, सरसों, बाजरा और सब्जियां प्रमुख हैं।

संभावनाएं

राजस्थान में जैविक खेती की अपार संभावनाएं हैं। सबसे पहले, यहां की शुष्क जलवायु कई प्रकार के कीट और रोगों के फैलाव को स्वाभाविक रूप से सीमित करती है, जिससे जैविक खेती करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। दूसरा, राजस्थान की पारंपरिक कृषि पद्धतियां पहले से ही कम रासायनिक उपयोग पर आधारित रही हैं, जिससे जैविक खेती की ओर बदलाव तेज़ी से संभव है। तीसरा, देश और विदेश में जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। विशेष रूप से यूरोप, अमेरिका और खाड़ी देशों में भारतीय जैविक अनाज, दालें और मसाले अच्छे मूल्य पर बिकते हैं। यह राजस्थान के किसानों के लिए निर्यात का एक बड़ा अवसर है।

राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में उगने वाली फसलें, जैसे बाजरा, ग्वार, मैथी, इसबगोल और जीरा, जैविक खेती के लिए उपयुक्त हैं। इन फसलों में जल की कम आवश्यकता होती है और ये प्राकृतिक रूप से कई कीट और रोगों के प्रति प्रतिरोधी होती हैं।

सरकारी कोशिशें

राजस्थान सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत किसान समूह बनाकर उन्हें जैविक खेती के प्रशिक्षण, जैविक खाद-कीटनाशी निर्माण और विपणन में मदद दी जा रही है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत भी जैविक खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

राजस्थान कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर जैविक खेती जागरूकता शिविर, प्रशिक्षण कार्यशालाएं और किसान मेले आयोजित किए जाते हैं। इसके साथ ही, जैविक उत्पादों के प्रमाणन के लिए किसानों को आर्थिक सहायता दी जाती है, ताकि वे अपने उत्पाद को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच सकें। राज्य सरकार ने कुछ जिलों को जैविक खेती ज़ोन के रूप में विकसित करने की योजना भी बनाई है, जहां पूरी तरह से रसायन मुक्त खेती होगी।

निष्कर्ष

राजस्थान में जैविक खेती केवल एक खेती पद्धति नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक निवेश है जो मिट्टी, पर्यावरण और किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकता है। यदि सरकार, किसान और बाजार मिलकर इस दिशा में प्रयास करें, तो आने वाले वर्षों में राजस्थान देश के अग्रणी जैविक खेती करने वाले राज्यों में शामिल हो सकता है। यह बदलाव न केवल किसानों की आमदनी बढ़ाएगा बल्कि उपभोक्ताओं को भी सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक भोजन उपलब्ध कराएगा।

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